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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>गूगल अर्थ पर
'अर्थ' को गोल-गोल घुमाते हुए
बिटिया को याद आई अचानक
माखनलाल चतुर्वेदी की काव्य-पंक्तियांपंक्तियाँ
'मसल कर अपने इरादों-सी उठाकर
दो हथेली हैं कि पृथ्वी गोल कर दे?'
 और उसने जाहिर ज़ाहिर कर दी पूरी कविता सुनने की जिज्ञासा।जिज्ञासा ।
तब मैंने सुनाई मात्र यह पंक्ति उसे-
'धरा? यह तरबूज है दो फाँक कर दे।दे ।
सुनकर मुस्कुराई वह
और माऊस को हल्का-सा टर्न देकर
सोचा,
इस तरह भी याद आती हैं कविताएंकविताएँ!
</poem>
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