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Kavita Kosh से
वह भी चढ़े बुढ़ापे में
सँभल कर चल ।
कोई भी सामान न रखना
जाना-पहचाना
किसी शत्रु का, किसी मित्र का
ढंग न अपनाना
अपनी छोटी-सी ज़मीन पर
अपनी उगा फसल
ज़हर जवानी में पी कर ही
जीती है रचना
जितना है उतना ही रख
गीतों में गंगाजल