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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार== शकीरा का वाका वाका कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita}}<poem>गुज़रती जा रही हो
भिगोती हुई
पानी की तेज तेज़ लहर
रह -रह कर
लगातार प्रज्वलित होती हुई
एक आग
सीसे को काटती हो
शहद की धार
ऐसी आवाज आवाज़
अल्हड किशोरी का
ऐसा नृत्य
बारिश का हो इंतजार इंतज़ार
छमाछम बरसे
अचानक
सोंदर्य की देवी
आ गयी गई हो
मूर्ति से बाहर
पूर्ण एश्वर्य
तब लगा वह अपने स्त्री रूप में
जब शकीरा ने
वाका -वाका किवा
देखो
अन्जान देश की लड़की
शकीरा में
</poem> ==