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[[क्रांतिकारियों से]]{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita‎}}<poem>बंधु, तुम हर समय
आक्रोशित क्यों रहना चाहते हो ?
दुखी रहना तुमने
हवाओं का गाना, फूलों का मुस्कुराना
तितलियों का इठलाना
कैसे गुजर गुज़र जाता है तुम्हारी संवेदनाओं को छुए बगैर बग़ैर
बच्चों कि मुस्कराहट
कैसे बची रह जाती है
तुम्हारी दृष्टि में बसे बगैर बग़ैर
तुम्हें उनके दुखों के प्रति
उनकी बीमारियाँ
कैसे छुपी रहती हैं
तुम्हारी क्रांति -दृष्टि से
तुम्हारे पास कुछ प्रतीक हैं
विरोध के लिए
लेकिन इन्ही प्रतीकों में
तुम्हारी कैद क़ैद तुम्हें
दिखाई क्यों नहीं देती है ?
और बंधु यह क्रांति उसी आदमी के
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