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Kavita Kosh से
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए
मैं ख़ुद भी अहतियातनएहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए