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हमारा दिल / बशीर बद्र
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12:17, 7 नवम्बर 2010
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए
मैं ख़ुद भी
अहतियातन
एहतियातन
, उस गली से कम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए
द्विजेन्द्र द्विज
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