{{KKRachna
|रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया
|संग्रह=लीलटांस/ कन्हैया लाल सेठिया ’
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita}}
<Poem>
देख रया हो
जाको भलो चेरो थे
ओ कोनी म्हारो,
जे चल्यो जाऊं
ईं चेरे स्यूं घरां
समझसी
कोई ओपरो है
म्हारी लुगाई'र पाड़ोसी !
</Poem>