भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
"[[दस दोहे (21-30) / चंद्रसिंह बिरकाली]]" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))
बरस घटा बण, बादळी मुरधर कानी जोय ।।24।।
सफेद सफ़ेद रूई के फाऐ फाये-सी तु तू घुल-घुल कर भूरी हो जाती है । बादली, मरूधरा की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो ।
जळहर ऊंचा आविया बोल रया जल-काग ।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,687
edits