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|रचनाकार=नवारुण भट्टाचार्य
|संग्रह=यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश / नवारुण भट्टाचार्य
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<poem>
अपार आनंद आ रहा है, डाक्टर
फ़िलहाल
पूरी तरह स्वस्थ
दो बरस पहले शायद सर्दियों में
शहर मेँ आया था सर्कस
इस बार सीने के भीतर शुरू है सर्कस
कुचले हुए होंठों के बीच नमकीन ख़ून

जोकर! जोकर!
अपार आनंद आ रहा है, डाक्टर!
ख़ून में जैसे कहीं कोई तार टूट जाने से
दम घुटकर थम जाती है ट्राम

उसकी तीनों आँखें बुझ जाती हैं चीखती हैं
मस्तिष्क मेँ कहीँ कोई स्नायु टूटती है

बेवज़न बिजली के लठ्ठ के भीतर
टूटे फ़िलामेंट की तरह काँपती है
भाग्यवान ही पकड़ा जा सकता है
उड़ते हुए ट्रैपीज़ में
उसके बाद?
फ़िलहाल पूरी तरह स्वस्थ


डॉक्टर! आपके चारों तरफ
छितराए हुए हैं इधर-उधर
बच्चों के अस्पताल में बम गिरने के बाद
ख़ून से लिथड़े हुए कपड़े
मूक-बघिर स्कूलों जैसी निस्तब्धता में
ख़ुद का जीवित रहना ही
लगा था कमांडो तत्परता की तरह

अब ऐसा नहीं लगेगा कभी
फ़िलहाल पूरी तरह स्वस्थ।

इस बीच ख़ून जमकर रोक देता है रास्ता
कार्डियोग्राम की तरह रेखांकित चेतना के स्त्रोत में
डॉक्टर, वह भीषण आवेश!
ख़ुद के भेजे हुए एस. ओ. एस.
आईनों के धक्के खाकर अपने ही
शरीर में लौट आते हैं
डॉक्टर , बेहद मज़ा है सर्दियों के सर्कस में।

</poem>