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नील / नवारुण भट्टाचार्य

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कलेजे में खिलते हैं प्रतिहिंसा के फूल
रक्त और स्मृति के बीच
मैं ज़रूर ढूँढ लूँगा कोई मेलमैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी, नीलनील।
प्रचण्ड लहरों ने सीने में जकड़ा था वह शव
बर्छी की नोक जैसी तीखी हवा में
तुम्हें फिर से छू लूँगा, नील।