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पटकथा 1388 / नवारुण भट्टाचार्य

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कि दुर्लभ पुण्य देता है गंदे नाले के पानी में स्नान
इस बीच झड़े बालों वाले कुछ बूढ़े चूहों का दल
फिइले फूले हुए पेट की बिल्लियों से करता है संभोग
वासना का खेल
इसी तरह कटते हैं दिन-रात काल-अकाल