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माँ / इवान बूनिन

262 bytes added, 07:12, 17 नवम्बर 2010
<poem>
दिन हैं गहरे जाड़े के
रात-रात भर स्तेपी <ref>सैकड़ों किलोमीटर तक फैले वृक्षविहीन मैदान</ref> में
हिम तूफ़ान गरजते रहते हैं
हर चीज़ पर बर्फ़ लदी है
जैसे दूर कोई चिल्लाया
स्तेपी <ref>सैकड़ों किलोमीटर तक फैले वृक्षविहीन मैदान</ref> में वह पड़ी अकेली
कौन भला मदद को आए
आँखें भरीं लबालब अश्रु-जल से
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
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