भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह रात / अनिल जनविजय

20 bytes added, 07:40, 17 नवम्बर 2010
|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>
मैं हूँ, मन मेरा उचाट है
 
यह बड़ी विकट रात है
 
रात का तीसरा पहर
 
और जलचादर के पीछे झिलमिलाता शहर
 
ऊपर
 
लटका है आसमान काला
 
चाँद फीका फीका,
 
मय का खाली प्याला
 
मन में मेरे शाम से ही
 
तेरी छवि है
 
इतने बरस बाद आज फिर याद जगी है
 
आग लगी है
 
(2004)
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,170
edits