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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
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इसके लेखे संसद=फंसद सब फ़िजूल है
 
इसके लेखे संविधान काग़ज़ी फूल है
 
इसके लेखे
 
सत्य-अंहिसा-क्षमा-शांति-करुणा-मानवता
 
बूढ़ों की बकवास मात्र है
 
इसके लेखे गांधी-नेहरू-तिलक आदि परिहास-पात्र हैं
 इसके लेखे दंडनीति ही परम सत्य है, ठोस हकीक़तहक़ीक़तइसके लेखे बन्दूकें ही चरम सत्य है, ठोस हकीक़तहक़ीक़त
जय हो, जय हो, हिटलर की नानी की जय हो!
 
जय हो, जय हो, बाघों की रानी की जय हो!
 
जय हो, जय हो, हिटलर की नानी की जय हो!
  (रचनाकाल : 1975)</poem>
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