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<Poem>
ये गर्म रेत ये सहरा<ref>जंगल, मैदान, रेगिस्तान</ref> निभा के चलना है
सफ़र तवील<ref>लम्बा</ref> है पानी बचा के चलना है
बस इस ख़याल से घबरा के छँट गए सब लोग
वो आए और ज़मीं रौंद कर चले भी गए
हमें भी अपना खसाराख़सारा<ref>हानि, क्षति, नुक़सान</ref> भुला के चलना है
कुछ ऐसे फ़र्ज़ भी ज़िम्मे हैं ज़िम्मेदारों पर
वो अपने हुस्न की ख़ैरात<ref>दान</ref> देने वाले हैं
तमाम जिस्म को कासा<ref>प्यालाभिक्षापात्र</ref> बना के चलना है
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