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[[Category: दोहा]]
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आज कळायण ऊमटी छौडे खूब हळूस ।
सो-सो कोसां वरणसी करसी काळ विधूंस ।।41।।
आज काली घटा उमड़ी है, हल्के बादल खूब बिखर रहे हैं । यह सौ-सौ कोसों तक बरसेगी और अकाल का विध्वंस करेगी ।
खिण दक्खण खिण उतर दिस खिण चोगरदीचट्।चोगरदीचट् ।कुण जाणै किण खोज में बीज झपाझप झट्।। 46।।झट् ।।46।।
एक क्षण दक्षिण में, एक क्षण उत्तर में और फिर क्षण भर में ही चारो और। ओर । कौन जाने किस खोज में , बिजली इतनी तेजी तेज़ी से भागदौड़ भाग-दौड़ कर रही है ?
पळ-पळ में पळका करै आभै भर्यो उजास।उजास ।जाणै प्रीतम-खोज में छाणै वीज अका्स।। 47।।अका्स ।।47।।
पल-पल में चमकती हुई बिजली से सारा आकाश उद्भासित हो रहा है, मानो प्रियतम की खोज मे बिजली आकाश को छान रही है।है ।
भूरी काळी बादली बीजळ रेख खिंचाय।खिंचाय ।जाण कसौटी ऊपरां सुवरण-रेख सुहाय।। 48।।सुहाय ।।48।।
भूरी और काली बादली में बिजली की रेखा -सी खिंच गई है, मानो कसौटी पर सोने की रेख सुहा रही हो।हो ।
जळ सो प्यारो जीव है कण सी कोमल काय।काय ।कुणसै कूणै बादळी, राखी वीजछिपाय।। 49।।वीजछिपाय ।।49।।
जल से बना तुम्हारा प्रिय जीवन है और धूलिकणों से बनी कोमल काया। काया । बादली, तुमने कौनसे कौन से कोने में बिजली जैसी चीज चीज़ को छिपा कर रक्खा है।है ।
सदा संजोण मोद में रह जळहर लिपटाय।लिपटाय ।विरहरण झुरै बीजळी, जिवड़ो मती जळाय।। 50।।जळाय ।।50।।