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रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद'
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इसका मतलब ये तो नहीं दीवार उठे अंगनाई में
किसके घर में झगड़ा होता नहीं है भाई भाई में

मुस्तकबिल की फिक्र में रहने वालों ये भी याद रहे
परबत से टकराओगे तो गिरना होगा खाई में

पहले एक दिया जलता था सारा गांव चमकता था
आज चरागा घर घर में है,अँधियारा अंगनाई में

माजी क़ी तह नाप रहा हूँ यादों के पैमाने से
पेड़ हरा रहता है बरसों जड़ हो अगर गहराई में

लाख उजाले साथ हैं फिर भी सहमा सहमा रहता है
इस एहसासे तारीकी है आँखों की बीनाई में

आंसू आह कसक बेचैनी दर्दे जिगर और हिज्रो फ़िराक
कितनी भीड़ छुपा रखी है हमने इक तन्हाई में

अहले मोहब्बत यूं ही नहीं दिन रात तेरे गुण गाते हैं.
तेरी सूरत देख रहे हैं 'बेखुद' की रुसवाई में </poem>