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चायवाली / अनिरुद्ध नीरव

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एक प्याली
बिना शक्कर चाय हूँ
पहचानती है वह मुझे
पूछती फिर भी कि
मीठी चलेगी क्या ?
जानती है कभी
मीठी भी चलाता हूँ
उसे क्या मालूम
शूगर कम हुआ तो
मैं बहुत मज़बूरियों में
सिर हिलाता हूँ
दूध खालिस अधिक पत्ती
अलग बरतन गैस भी तो
क्या न झंझट मानती है वह मुझे
चाय डिस्पोजल में देना
जब कहा तो
व्यंग्य से बोली
कि डिस्पोजल नहीं है जानिए
सुबह झाड़ू मारने वाले
भी तो हैं आदमी
इस ज़माने में
न इतना छुआछूत बखानिए
कूट अदरक डाल पत्ती
खौलने तक रंग ला कर
धार दे कर छानती है वह मुझे ।
</poem>
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