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Kavita Kosh से
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देखना चाहते हैं हम जिनकोस्वप्न वो रात भर नहीं मिलते।
जंगलों में भी जाके ढूँढ़ो तोइस क़दर जानवर नहीं मिलते।
दूर परदेश के अतिथियों सेदौड़कर के ये नगर नहीं मिलते।
चाहती हैं जो बाँटना खुशबूउन हवाओं को ‘पर’ नहीं को‘पर’नहीं मिलते।
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