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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव भरोल }} [[Category:ग़ज़ल]] <poem> इश्क़ पर ये इम्तिहाँ…
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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव भरोल
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
इश्क़ पर ये इम्तिहाँ फिर आ पड़ा है,
सामने दरिया है और कच्चा घड़ा है.
फिर से उसने मुझसे पूछा है इरादा,
ज़ेह्न में फिर सोच का इक ख़म पड़ा है.
आँधियों ने है इन्हें बख़्शी बुलंदी,
कोई तो ज़र्रों के हक़ में भी खड़ा है.
पहले हम अपनी अना सर से उतारें,
फिर ये देखें किसका क़द ज़्यादा बड़ा है.
रौशनी के दल में हैरानी है सबको,
इक दिया तूफ़ान की ज़िद से लड़ा है.
दिल को सिखलाएँ ज़ुबाँ ख़ामोशियों की,
धड़कनों पर तो यहाँ पहरा कड़ा है.
</poem>
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|रचनाकार=राजीव भरोल
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
इश्क़ पर ये इम्तिहाँ फिर आ पड़ा है,
सामने दरिया है और कच्चा घड़ा है.
फिर से उसने मुझसे पूछा है इरादा,
ज़ेह्न में फिर सोच का इक ख़म पड़ा है.
आँधियों ने है इन्हें बख़्शी बुलंदी,
कोई तो ज़र्रों के हक़ में भी खड़ा है.
पहले हम अपनी अना सर से उतारें,
फिर ये देखें किसका क़द ज़्यादा बड़ा है.
रौशनी के दल में हैरानी है सबको,
इक दिया तूफ़ान की ज़िद से लड़ा है.
दिल को सिखलाएँ ज़ुबाँ ख़ामोशियों की,
धड़कनों पर तो यहाँ पहरा कड़ा है.
</poem>