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|रचनाकार=लाला जगदलपुरी |संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाडते दहाड़ते परिवेश/ लाला जगदलपुरी
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{{KKCatKavita}}<poem>जिसके सिर पर धूप खडी खड़ी हैदुनियाँ दुनिया उसकी बहुत बडी है।बड़ी है ।
ऊपर नीलाकाश परिन्दे,
नीचे धरती बहुत पडी है।पड़ी है ।
यहाँ कहकहों की जमात में,
व्यथा कथा उखडी उखडी उखड़ी-उखड़ी है।
जाले यहाँ कलाकृतियाँ हैं,
प्रतिभा यहाँ सिर्फ मकडी सिर्फ़ मकड़ी है।
यहाँ सत्य के पक्षधरों की,
सच्चाई पर नज़र कडी कड़ी है।
जिसने सोचा गहराई को,
उसके मस्तक कील गडी है।गड़ी है ।
और कहाँ तक प्रगति करेगी,
बस्ती यहाँ कहाँ पिछडी पिछड़ी है? ---------- साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com के बस्तर के 'वरिष्ठतम साहित्यकार' की रचनाओं को अंतरजाल पर प्रस्तुत करने के प्रयास के अंतर्गत संग्रहित। </poem>
