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जल विरह / संतोष मायामोहन

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<Poem>जब गिरती है बूंद बूँद
पृथ्वी तल
छम-छम नाचता है जल ।
 
हर्षित होती है बावड़ी
बरसने की आशा
जी उठता है जल
 
गर ना बरसे
तो सूक मरे
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