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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार अनिल|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>तुमने हँस के जो देखा जरा सा मुझे, हर तरफ चांदनी तरफ़ चाँदनी की फसल फ़सल हो गई ।
एक पल के लिए भी जो रूठ गए अपनी साँस भी मुझको गरल हो गई ।
तुम हमसे मिले, मिल कर बिछुड़े, हमें कविता की भाषा सरल हो गई ।
सुख के- दुःख दुख के यूं यूँ शेर मिले, जिन्दगी ज़िन्दगी एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गई ।
</poem>
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