भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
हमने दुनिया की ख़ाक छानी है
घर के बहार बाहर निकल के देखो तो
आज की रुत बहुत सुहानी है
मेरी ग़ज़लों में दर्दे मुफ़लिस है
कोई राजा , न कोई रानी है
फिर से महकेगा आज घर मेरा
आज फिर याद उनकी आनी है
</poem>