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विश्राम कर लेने पर वन-नदियों के किनारों / कालिदास

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विश्रान्‍त: सन्‍ब्रज वननदीतीरजालानि सिञ्च-
     न्‍नुद्यानानां नवजलकणैर्यू थिकाजालकानि।
गण्‍डस्‍वेदापनयनरुजा क्‍लान्‍तकर्णोत्‍पलानां
     छायादानात्‍क्षणपरिचित: पुष्‍पलावीमुखानाम्।।

विश्राम कर लेने पर, वन-नदियों के किनारों
पर लगी हुई जूही के उद्यानों में कलियों को
नए जल की बूँदों से सींचना, और जिनके
कपोलों पर कानों के कमल पसीना पोंछने
की बाधा से कुम्‍हला गए हैं, ऐसी फूल
चुननेवाली स्त्रियों के मुखों पर तनिक छाँह
करते हुए पुन: आगे चल पड़ना।