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नीचैराख्यं गिरिमधिवसेस्तत्र विश्रामहेतो-
स्त्वसंपर्कात्पिुलकितमिव प्रौढपुष्पै: कदम्बै:।
य: पण्यस्त्रीरतिपरिमलोद~गारिभिर्नागराणा-
मुद्दामानि प्रथयति शिलावेश्मभिर्यौ वनानि।।
विश्राम के लिए वहाँ 'निचले' पर्वत पर
बसेरा करना जो तुम्हारा सम्पर्क पाकर खिले
फूलोंवाले कदम्बों से पुलकित-सा लगेगा।
उसकी पथरीली कन्दराओं से उठती हुई
गणिकाओं के भोग की रत-गन्ध पुरवासियों
के उत्कट यौवन की सूचना देती है।