विश्वकर्मा जयन्ती / हरिओम राजोरिया
पैकेट की सारी अगरबत्तियों को एक साथ जलाकर
उसने वातावरण में ख़ुशबूदार धुआँ फैला दिया
फिर एक-एक मिठाई का टुकड़ा खिलाया सबको
महाराज विश्वकर्मा का जयकारा हुआ
और सारे लड़कों को काम पर निकाल दिया
कम्पनी को मिला है सड़क बनाने का ठेका
नए-नए लड़कों को भी मिला है नया काम
सुदूर दक्षिण से आया है इंजीनियरों का दल
दल में असम, बंगाल, उड़ीसा
जैसे प्रदेशों के भी कुछ लड़के शामिल हैं
ये हिन्दी भले ही ठीक से न बोल पाएँ
पर हिन्दीभाषी मालिकों के गुस्से और गालियों से
इनका नज़दीकी परिचय है
ये जो उड़िया लड़का है सुशान्त
सड़क बनाते-बनाते
सड़क जैसे ही रंग का हो गया
विश्वकर्मा जयन्ती मनाने और प्रसाद प्राप्ति के बाद
सीधा काम पर आकर खड़ा तो हो गया
पर कुछ-कुछ गुस्से में जान पड़ता है
हालाँकि इस मूल्यहीन गुस्से और खीझ की
क़दर करने वाला कोई नहीं इस बियाबान में
घृणा अनेक स्तरों पर छन-छन कर
सुशान्त के चेहरे पर दिखाई पड़ रही है
इन लड़कों को नौकरी जैसा कुछ मिला है
होने को ये इंजीनियर कहलाते हैं
पुराने हो नहीं पाते कि पुराने होने से पहले
इन पुरानों से और ज़्यादा सस्ते लड़के
कम्पनी में काम पर लग जाते हैं
इनके पिता अपने जानने वालों को
इनके सेलरी पैकेज के बारे में बताते होंगे
इनमें से ज़्यादातर ने बैंक से क़र्ज़ लेकर
निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों से
महँगी डिग्रियाँ हासिल की हैं
एक कम्पनी से दूसरी कम्पनी में
छलाँग लगाते हुए
इनके भीतर कहीं न कहीं कुछ टूट जाता है
काम ठोककर और पैसा रोककर
देने वाली इन कम्पनियों के पास
नौकरी छोड़ते वक्त दो से तीन महीनों
की सैलेरी का पैसा अटका ही रह जाता है
दिल बड़ा रखने के अलावा
कोई विकल्प नहीं होता लड़कों के पास
पहले जब "इंजीनियर" शब्द कानों में पड़ता
तो इनकी स्मृति में पुराने नोटों पर छपा
भाखड़ा नङ्गल बाँध का फ़ोटो कौंध जाता
यहाँ आकर ये अपने आप को ही भूल गए
भूल गए अपनी उम्र
भूल गए जीवन का आवेग
इनका कोई चेहरा नहीं पर एक पदनाम ज़रूर है
नियत समय पर नियत स्थान पर पहुँचकर
नियत काम पूरा कर लेने के बाद ही
ये लौट पाते हैं अपनी सोने वाली जगह पर
कहने को आप चाहो तो
कह सकते हो इन्हें भारत का भविष्य
पर फिलहाल इनके सामने है
आवारा पूंजी से निर्मित
लाभ केन्द्रित एक कम्पनी का भविष्य
सैलरी, पी०एफ०, पैकेज इन शब्दों के साथ
ये जुते हैं सड़क निर्माण के रास्ते पर
एक आदमी हज़ार किमी दूर बैठा
करता रहता है इनका संचालन
इन्हें कम्पनी के व्हाट्सएप समूह में
प्रश्नचिन्ह पर प्रश्नचिन्ह मिलते हैं
आज सात सौ मीटर कँक्रीट होना था
कितना हुआ ?
तीन बज रहे हैं और सिर्फ़ चार सौ ?
कल्ला से कहो फ़ोटो भेजे !
रेड्डी को प्लाण्ट पर भेज !
क्वालिटी हम पर छोड़
नायडू को फ़ोन लगा
और मिक्स में थोड़ा पानी बढ़वा !
आगे सफ़ाई पर कौन है ?
हरामख़ोर ! तुम्हारे बाप का पैसा है ?
ज्वाइण्ट में इतना लोहा मत डाल !
सफ़ेद हाथी पाल रखे हैं हमने
खाते हैं और लीद करते हैं
पर काम नहीं करते ।
कटते-काटते इसी तरह गुज़रते चले जाते हैं
युवजनों की जवानी के
कठिन से कठिनतर होते जाते दिन
पेड़ों-पहाड़ों से होता बारिश का पानी
नीचे उतरकर नालों में मिल जाता है
इसी तरह फिर लौट आता है
वही विश्वकर्मा जयन्ती का दिन
ठेकेदार का कोई अर्धशिक्षित प्रतिनिधि
अगरबत्ती जलाकर, टुनटुनी हिलाता है
मिठाई का एक-एक टुकड़ा
सभी लड़कों को खिलाया जाता है
और इंजीनियरों का दल
फिर किसी नए काम पर निकल जाता है ।