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विश्वासी मन मेरा / ऋषभ देव शर्मा

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रह-रहकर मुझको छलता, विश्वासी मन मेरा
अंबर की ओर मचलता, सन्यासी मन मेरा

नित ऊषा से संध्या की, चौखट तक सूरज सा
जलता चलता गल ढलता, अभ्यासी मन मेरा

मधुवन ने तो यौवन को, वर लिया स्वयंवर में
नारद सा कभी उबलता, प्रत्याशी मन मेरा

बाँहों में कभी पिघलता, आहों में जम जाता
चाहों में कभी तरलता, अभिलाषी मन मेरा

पारे का सागर जैसे, लोहू में बसा हुआ
भीषण लूओं में पलटा, मधुमासी मन मेरा