विश्वास न करना, ओ युवती, कवि पर / फ़्योदर त्यूत्चेव
विश्वास न करना, ओ युवती, कवि पर
अपना उसे तुम कभी न मानना !
कवि के क्रोध से कहीं अधिक
उसके प्रेम से तुम डरती रहना !
अपने निश्छल सुकुमार मन से
जीत न सकोगी तुम उसका हृदय,
दहकती आग की लपटों को
छिपा न पाएगा तुम्हारा कौमार्य ।
प्रकृति की तरह सर्वशक्तिमान होता है कवि
पर स्वयं अपने में वह होता है वह शक्तिहीन,
इच्छा विरुद्ध वह अपने मुकुट से
युवा घुंघरालोम का करता है अभिनन्दन ।
विवेकहीन लोगों की भीड़ उसका
या सम्मान करती है या फिर अपमान..
हृदय पर वह सर्प की तरह डंक नहीं मारता
बल्कि मधुमक्खी की तरह चूसता रहता है उसे ।
तुम्हारे आराध्य को कभी
अपवित्र नहीं करेगा कवि अपने निर्मल हाथों से ।
पर अचानक घोंट डालेगा ज़िन्दगी का गला
या उठा ले जाएगा बादलों के पार उसे।
(1836)