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विश्वास रोॅ दुनियाँ / शिवनारायण / अमरेन्द्र

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महानगर रोॅ रेलमपेल में
भँसतें होलेेॅ
जबेॅ मनोॅ में कहीं
गजुरेॅ लागेॅ
असकरोॅ जीयै के किंछा
जेना कोय निर्जन में
दूर-दूर तांय फैललोॅ
हरा-भरा घास में
केकरोॅ गर्म सौंसो में
समेटी लै के किंछा
आकि फेनू
कत्तेॅ-कत्तेॅ भरलोॅ नद्दी केॅ
एक्के साँसोॅ में
सुड़की लै केॅ किंछा
तेॅ हेना में
गजुरेॅ लागै छै
कोय मोहक रूप।

सृजन के
ई मोहक रूप सें
हमरोॅ कै-कै जन्मोॅ के
आदिम रिश्ता रहलोॅ छै
जेना माँटी, पानी, हवा
रौद, प्रकाश साथें
जीयै के हमरोॅ किंछा!
जे रिश्ता
एकपैरिया पर उगै छै
मेघोॅ के साथ पलै-बढ़ै छै
आरो धरती के विस्तार में
अनन्त आकाश केॅ
दोस्त बनाय छै
ऊ भला कबेॅ
राजपथ के प्यास
आकि महानगर के भीड़ में
आपनोॅ पहचान रोॅ
सौदा करै छै।

बाजार केॅ चाही भीड़
भीड़ केॅ एक ठो चेहरा
लोगोॅ-लोगोॅ रोॅ विश्वास
मजकि विश्वास तेॅ
रिश्ता में पलै छै
जेकरा कहाँ होय छै
बाजार के कोय दरकार।

ऊ सब के छेकै
जे रोपै लेॅ चाहै छै
रिश्ता में बाजार!

हमरा तलाश छै
भीड़ में एकान्त रोॅ
आरो ऊ सब एकान्त में
भीड़ उगावै लेॅ चाहै छै।

ई केन्होॅ
उत्तर आधुनिक के संस्कृति में
हमरासिनी जीत्तोॅ छियै
कि अपनोॅ निजतौ
आबेॅ अपनोॅ नै रहलै।
महानगर के
धक्कमधुक्की सें अलग
हम्में नरम-नरम दुबड़ी के
दुनियाँ बसावै लेॅ चाहै छी
जैठां रंग-बिरंगा तितली सिनी
मखमली बूंद आरो
पंछी सिनी के साथें हुएॅ
आदमी के विश्वास के
पनसोखा रोॅ अठखेली।

की तोहें हमरोॅ विश्वास के
ई दुनियाँ सें
जुड़ै लेॅ चाहवौ
अपनोॅ नेह-नातोॅ।