भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वास / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसने कहा था कि मैं सुबह तक
जरुर लौट आऊँगा
पर वह लौटता कैसे
जिसकी जिन्दगी में
कभी सुबह हुई ही नहीं
लेकिन
वह हारा नहीं है
वह जरुर लौटेगा
और
इस बार
जब वह लौटेगा
तो उसके हाथ में
एक नया सूरज होगा