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विश्वास / मोहन अम्बर
Kavita Kosh से
ओ मेरी पागल पलको मत छलको पागलपन में
आते और चले जाते ये सुख-दुख तो जीवन में।
कभी जेठ जलता है तो मधु पावस रितु भी आती,
धूल उड़ाने वाली बदली, धरती भी रंग जाती।
जो कल रोई आज वही फिर गाती है सावन में,
आते और चले जाते ये सुख-दुख तो जीवन में
ओ मेरी पागल पलको॥
कभी सिंदूरी साँझ साथ में रात साँवली लाती,
कभी साँवली रात पलों में रूपा की बन जाती।
बन बन मिटता, ढलता, चढ़ता कहता चाँद गगन में,
आते और चले जाते ये सुख-दुख तो जीवन में।
ओ मेरी पागल पलको॥
कभी लहर के वश हो नौका तीर नहीं आ पाती।
कभी तीर बँध कर वह मँझधार नहीं जा पाती।
रोज गीत गाता है माँझी प्यार ज्वार उलझन में।
आते और चले जाते ये सुख-दुख तो जीवन में।
ओ मेरी पागल पलको॥