भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विश्वास / सांवर दइया
Kavita Kosh से
अकुलाई आंखें
स्तब्ध चेहरे
कान : आकाशवाणी प्रसारण पर
कलेजे बेधती शोक धुन
सत्य स्वीकारने को
तैयार नहीं सांसें
हुआ है
फिर भी यही कहते लोग-
यह नहीं हो सकता !
हुए को नकारते लोगों का
अटूट विश्वास
अटूट विश्वास रखने वालो-
किस मुंह से कहूं तुम्हें
कि कहीं धज्जी-धज्जी कर
उड़ा दिया गया है विश्वास !