भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्व का ध्रुवतारा / सुरजन परोही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह है देश हमारा सूरीनाम, प्राणों से भी प्यारा।
देश की उन्नति, देश की रक्षा ही है धर्म हमारा।
यह है देश जहाँ पर रहते हैं-हम हिन्दुस्तानी।
क्रयोल, जावी भी हैं, साथ में इंगी और चीनी।
सभी धर्म मिलकर रहते हैं जैसे हों चाँद सितारे
भेद भाव नहीं करते हम, सभी हैं अपने प्यारे।
यहाँ सबको है अपनी बोली, अपनी बानी
ललित कलाओं की बना ली है अमर कहानी।
नदियाँ, समुद्र और पहाड़ों की हैं हमारी सीमाएँ
हरा भरा रहे वर्ष भर, बरसे यहाँ अमृत धाराएँ।
इस मिट्टी से हमें मिलता है, करेला, गोभी, बाना
सब्जी, नारंगी, कसेरू, खेतों में उगता हर दाना।
नहीं है कमी किसी चीज की, हर घर में है धान।
मिट्टी का तेल, बॉक्साइट और सोने की है खान।
बताता है हमें ध्वजा में चमकता सुनहरा सितारा
प्यारे देश को बनाना है विश्व का ध्रुवतारा।