विषदंती वरमाल कालक रति.. / प्रवीण काश्यप
कियेक नहि कऽ पाबै छी हम पूर्ण विश्वास अहाँ पर?
एखनहुँ संभावना शेष अछि किन्तुक!
कखनहुँ-कखनहुँ होइत अछि ग्लानि
हमरा अपना मन पर।
कतहु कोनो दोग में नुकायल साँप
उठबऽ लगैत अछि अपन फन!
हमरा जनैत हम दुनू नवसिक्खू छी एखन धरि
प्रौढ़ता अयबाक शेष अछि अपन प्रेममे।
एखनहुँ भरल अछि अपूर्णता हमर काव्यमे
अपन कविता कें हमरा आत्मसात करब शेष अछि।
एखनहुँ गरैत अछि हमरा आँखिमें अहाँक मौन
हमरा मने किछु नुका रखने छी अहाँ अपन मौनमे!
अहाँक मौनक ई पाथर हम आठो पहर
छाती पर उघने पाथर भऽ गेल छी
कियेक नहि फेक पाबै छी हम ई पाथर
कियेक नहि कऽ पाबै छी हम पूर्ण विश्वास अहाँ पर?
रातिक नीरवता में एखनहुँ कोनो छाया अछि
दू देहक बीच एखनहुँ किछु रखने छी अहाँ!
अपन मिलन में एखनहुँ अंतः वस्त्रक सीमा अछि
किंचित अहाँक पूर्वप्रेमी वा हमर कोनो प्रेमिकाक भूत
अपन लोकक बीच अछि आनक ठाढ़ कयल देबाल!
नहि कऽ पबै छी हम पूर्ण विश्वास अहाँ पर!
नग्न प्रेमक बीच अछि अहाँक मौेन, हमर अविश्वास
अन्हार में कोनो छाया अछि हमरा-अहाँक बीच
एक उभयलिंगी पिशाच पड़ल अछि अपना बीच
फेरैत करोटक संग जे बदलैत अछि रूप, लिंग
हम दुनू विवश भेल ओकरा संग रति में छी सहभागी
हमरहि प्रश्रय पर भेल अछि ओ एतेक ढीठ!
सभ रतिक संग जे चूसि रहल अछि हमर रक्त!
एहि मौन-अविश्वासक पिशाच कें की नाम दी हम?
कियेक नहि कऽ पबै छी हम पूर्ण विश्वास अहाँपर?