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विषम भूमि नीचे, निठुर व्योम ऊपर / शंभुनाथ सिंह

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विषम भूमि नीचे, निठुर व्योम ऊपर !

यहाँ राह अपनी बनाने चले हम,
यहाँ प्यास अपनी बुझाने चले हम,
जहाँ हाथ और पाँव की ज़िन्दगी हो
नई एक दुनिया बसाने चले हम;
विषम भूमि को सम बनाना हमें है
निठुर व्योम को भी झुकाना हमें है;
न अपने लिए, विश्वभर के लिए ही
धरा व्योम को हम रखेंगे उलटकर !

विषम भूमि नीचे, निठुर व्योम ऊपर !
अगम सिन्धु नीचे, प्रलय मेघ ऊपर !

लहर गिरि-शिखर सी उठी आ रही है,
हमें घेर झंझा चली आ रही है,
गरजकर, तड़पकर, बरसकर घटा भी
तरी को हमारे डरा जा रही है
नहीं हम डरेंगे, नहीं हम रुकेंगे,
न मानव कभी भी प्रलय से झुकेंगे
न लंगर गिरेगा, न नौका रुकेगी
रहे तो रहे सिन्धु बन आज अनुचर !

अगम सिन्धु नीचे, प्रलय मेघ ऊपर !
कठिन पंथ नीचे, दुसह अग्नि ऊपर !

बना रक्त से कण्टकों पर निशानी
रहे पंथ पर लिख चरण ये कहानी

बरसती चली जा रही व्योम ज्वाला
तपाते चले जा रहे हम जवानी;
नहीं पर मरेंगे, नहीं पर मिटेंगे
न जब तक यहाँ विश्व नूतन रचेंगे
यही भूख तन में, यही प्यास मन में
करें विश्व सुन्दर, बने विश्व सुन्दर !

कठिन पंथ नीचे, दुसह अग्नि ऊपर !