विषहरी का नक्षत्र मंगाना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा
होरे सुमिरे तो लगली हे माता सातो नक्षत्र हे विषहरी
होरे सुमिरे तो लगली माता बीर हनुमान हे।
होरे आगे भये आवेहे हनुमन्त ठाढ़ भय गेली हो।
होरे कौन दुख पड़लो हे माता कहौं समुझाए हे।
होरे किये तो कहबौं रे पूता कहलो ना जाये रे।
होरे चान्दवा जीतल रे पूता हम जे हारल रे॥
होरे मृत तो भुवन रे पूता पुजबा दिलैवे रे।
होरे देहो तो हुकुम हे माता चन्दवा के मारौ हे॥
होरे लोहा बांस घर हे माता करउ चककून हे।
होरे देहो तो समतरे माता गंगा में भसाएव हे॥
होरे चान्दवा मारहे पूता पूजा कौन देत रे।
होरे हथिया नक्षत्र हे माता आये तो जुमले रे॥
होरे कौन दुख पड़लौ हे माता कहबे समझायेरे।
होरे किए तो कहबे रे पूता कहलो नहिं जाये रे॥
होरे चांदवा जीतल रे पूता हमें जे हारलौं रे।
होरे एक घरतोपाथर रे हथिथा मेघवा लगावोलोरे।
होरे चिहला केरछाहो रेहथिया मेघवा लगावोलेरे।