विषाद का वट (जीवन दर्शन)
आँखों में रहता है,
छाती में जलता है,
यह विषाद का वट
मेरे भीतर पलता है।
मिट जायें सुख-दुख के बन्धन
धुल जाये सुधारस में जीवन
उड़ जाये उर का सब विषाद,
प्राणों में करती कल-निनाद,
धुस आवे सुख बाढ़ सधन।
( विषाद का वट कविता का अंश)