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विषाद की कविता / दिनकर कुमार

विषाद के कन्धे पर
सिर रखकर फुसफुसाता हूँ--
कहीं आप को ख़बर न हो जाए
किस कदर उदास हूँ मैं
किस कदर
टूटा हूँ मैं

वीरान पगडंडी पर
पैदल चल रहा हूँ
हवा कानों में कहती है--
कितना कुछ बदल गया है
तुम भी क्यों नहीं बदलते ?

पीड़ा को लेकर
कैसे मैं आपके पास आऊ‘ं ?
आपकी ख़ुशियों की कालीन
मैली हो जाएगी
धुँधले हो जाएँगे
ख़ुशहाली के चित्र
बोझिल हो जाएगा
आपके दावतख़ाने का माहौल

यहां ठीक है
अपने सलीब को
लटकाकर अपने कन्धे पर
घिसटता रहूँ मैं
जब तक साहस है
जब तक दम है

फिर आप शोध करें
पद-चिन्हों पर
लहू के धब्बों पर
महानता पर
अवदानों पर
कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा ।