भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विषाद - 2 / विजेंद्र एस विज
Kavita Kosh से
उन्होंने मुझे शामिल नहीं किया
अपनी बिरादरी में....
सभी परिभाषाओं को नकारते हुए
मैंने छलांग लगाने की कोशीश की
तो आत्म विश्वास आड़े आ गया
अब वह मुझे पाताल की ओर
धकेले लिए जा रहा है...