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विष्णु-विनय 1 / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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अगम अगोचर अलख अविनाशी प्रभु, अजर अमर अशरणके शरण हो।
अभय अनन्त अपतितन के हो पति गति, अचल अनाथ बन्धु अनर करन हो॥
अक्षय अयोनि वो अयाची हो अचिन्त्य रूप, आदि अन्त धरनी के तारन तरन हो।
अचुत अपार अविगति सन्तके अधार, भुवन के भरनहार भंजन भयन हो॥1॥