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विसेसता / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
समझी
कुदरत जरूरत
न्यारी न्यारी
पिछाण री
इण वास्तै राखी
हर सिरजण में
कीं न कीं
विसेसता
जे सै हूतां एक सा
भरमीज ज्याती
चेतणा
बिन्या लाग्यां
संग्यां रै सागै
कोई विसेसण