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विस्तार / कुलदीप सिंह भाटी
Kavita Kosh से
प्रेमिका ने कहा कि
उसका प्रेम आसमान
जितना व्यापक है।
प्रेमी ने देखा सागर की तरफ
और कहा -
'देखो प्रिये!
कितनी गहराई लिए है
यह सागर।
कितना प्यारा लग रहा है
आसमान के रंग में रंगा
यह सागर।
कितना स्पंदित-तरंगित है
प्रेमिल हृदय सा
यह सागर।
इतना सुनकर
मुस्कुराते हुए
प्रेमिका ने प्रेमी को
ले लिया
अपनी बाँहों की परिधि में।
और
देखा मैंने एक बार फिर
प्रेम की व्यापकता और गहराई को।
एक-दूजे के रंग में रंगे
आसमान और सागर को।
साँसों से संपृक्त हृदय में उठती
प्रेमिल तरंगों को।