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विस्तार / भास्कर चौधुरी
Kavita Kosh से
बिक रहे हैं
पास-पड़ोस के खेत
छोटे-छोटे टुकड़ों में
आसमान छूती कीमतों पर
इन्हीं खेतों को कभी खरीदा था
बिल्डरों ने कौड़ियों के मोल
सिमट रहा है
पानी
सिमट रही है
हवा
सिमट रहे हैं
बरगद
नीम
बबूल
आकाश सिमट रहा है
शहर का हो रहा है विस्तार!!