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विस्मय / महेन्द्र भटनागर
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कौन छीन ले गया हँसी फूलों की ?
कौन दे गया अरे, फ़सल शूलों की ?
कौन आह! फिर-फिर कलपाता, निर्दय
याद दिला कर, चिर-विस्मृत भूलों की ?