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विस्मित हूं / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
विस्मित हूँ -
कौन हो तुम
क्या रिश्ता है तुमसे
ऐसा तो नहीं होता अनायास कि
कोई चुपके से
थमा जाये आपकी मुट्ठी में
बरसों से बिछुड़ी कविता
और आप भौचक
देखते रह जायें बस
थम कर सोचती हूँ
पाती हूँ कि
कविता के साथ
लौट आया है मेरा विश्वास -
सब कुछ ख़तम होने के बाद भी
बचा रह जाता है
हमारा वर्तमान
तुम्हारे सक्षम हाथों में
आश्वस्त करती है
तुम्हारी उपस्थिति कि
इस देश का भविष्य
उज्जवल है