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वीनती सुनु जगतारिणि मईया शरण आहांक हम आयल छी / मैथिली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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वीनती सुनु जगतारिणि मईया शरण आहांक हम आयल छी
कतहु शरण नहिं भेंटल जननी जग भरि स ठुकरायल छी
कत जन पतितक कष्ट हरण भेल आहां हमर किया परतारई छी
वामही अंग वामही कर खप्पर, दाहीन खडग विराजई छी
अरुण नयन युग अंग कपइत, हंसइत अति विकराल छी
छनहिं कतेक असुर के मारल, कतेक भयल जिवताने छी
यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से