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वीराने बाग़ बाग़ हैं मेरी निगाह से / नियाज़ हैदर
Kavita Kosh से
वीराने बाग़ बाग़ हैं मेरी निगाह से
ज़र्रात शब-ए-चराग़ हैं मेरी निगाह से
मेरी नज़र शुआ जिगर-सोज़-ओ-जाँ-गुदाज़
रौशन दिलों के दाग़ हैं मेरी निगाह से
है किस क़दर हसीन ये तस्वीर-ए-काएनात
ख़ुश-रंग बाग़ ओ राग़ हैं मेरी निगाह से
साक़ी की चश्म-ए-मस्त पे इल्ज़ाम आ न जाए
लबरेज़ सब अयाग़ हैं मेरी निगाह से
वो बे-नियाज-ए-दर्द-ओ-ग़म-ए-ज़िंदगी ‘नियाज़’
वो लोग बा-फ़राग़ हैं मेरी निगाह से