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वीरान सी डगर है कोई हमसफ़र नहीं / अजय अज्ञात

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वीरान सी डगर है कोई हमसफ़र नहीं
हद्दे-निगाह तक कोई आता नज़र नहीं

हिर्सो-हवस की क़ैद ने जकड़ा है इस तरह
मुझ को मेरे वुज़ूद की कुछ भी ख़बर नहीं

मुझ को बहुत ही देर में मालूम ये हुआ
इस मंज़िले मुराद की यह रहगुज़र नहीं

तूफ़ान साहिलों पे ही दम तोड़ता रहा
उम्मीद के जहाज़ पे होता असर नहीं

मैं तो ग़ज़ल के इश्क़ में डूबा हूँ दोस्तो
रुस्वाईयों का मुझ को ज़रा-सा भी डर नहीं