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वीर न अपनी बान छोड़ते / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
सूरज अपनी चमक छोड़ दे,
तो कैसे हो दूर अँधेरा?
धरती पर सब पेड़ पड़ रहें,
तो चिड़ियाँ लें कहाँ बसेरा
दूध लगे यदि खारा होने,
तो कैसे माँ प्यार दिखावे?
आग अगर तज दे गरमाहट,
रोटी कैसे कौन पकावे?
तजते नहीं स्वभाव उच्च जन,
पर सेवा से मुहं न मोड़ते,
लाख मुसीबत मिले मार्ग में,
वीर न अपनी बान छोड़ते।