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वी. आइ. पी. मूवमेंट / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
सड़क की धड़कनें
रोक दी गई हैं
साँस लेना बंद कर दिया है
वाहनों ने भी
राहगीर बेचारगी से
किनारे खड़े हैं
घड़ी की सुइयाँ भी जैसे
जहाँ थीं वहीं रुक गई हैं
एक अंतहीन प्रतीक्षा के बाद
बैरिकेड की लक्ष्मण-रेखा
के उस पार होने लगा है
वी. आइ. पी. मूवमेंट
लाल-बत्तियों के काफ़िले
से आती सायरन की आवाज़ें
रौंदने लगी हैं सबकी चेतना को
मुस्तैद खड़ा है
ट्रैफ़िक-पुलिस विभाग
चौकस खड़े हैं
हथियारबंद सुरक्षा-कर्मी
अदब से खड़ा है
समूचा तंत्र
सहमा और ठिठका हुआ है
केवल आम आदमी का जनतंत्र
यह कैसा षड्यंत्र ?
मित्रो
आम आदमी की असुविधा के यज्ञ में
जहाँ मुट्ठी भर लोगों की सुविधा का
पढ़ा जाए मंत्र
वह कैसा गणतंत्र?